जीवन में हम सभी की अभिलाषा होती है कि एक बार तो देव दर्शन हो ही जायें । इस चाह में व्यक्ति क्या कुछ नहीं करता, मंदिर जाता है, व्रत करता है, पूजन – अर्चन करता है, सैकड़ों मीटर लेटकर चलता हुआ अपने इष्ट के मंदिर तक परिक्रमा करता है…और भी न जाने क्या क्या करता है । सिर्फ इसीलिए तो कि एक बार उसके इष्ट की उस पर कृपा हो जाए । लोग पूरा जीवन लगा देते हैं कि काश एक बार फलां देवता के दर्शन हो जायें तो जीवन धन्य हो जाए । इतनी तपस्या करते हैं, इतना त्याग करते हैं पर दर्शन किसी – किसी सौभाग्यशाली को ही होते हैं । वैसे तो कृपा का अहसास लोगों को हो जाता है । उनके कुछ रुके हुये काम बन जाते हैं । किसी को किसी और भी तरह से कृपा प्राप्त होती ही है । लोग संतुष्ट भी हो जाते हैं कि दर्शन नहीं हुये तो चलो, कोई बात नहीं, कम से कम, उनकी कृपा तो मिली…!!!
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Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!ये तो रही कृपा प्राप्ति लेकिन, जीवन में 2-4 काम पूरे हो जाना अपने आप में अनोखी घटना नहीं है । अनोखी घटना तब है जब आप उन 33 करोड़ देवी – देवताओं की लाइन में सबसे आगे खड़े होकर, परमात्मा के प्रकाश स्वरुप या सच कहूं तो जो विराट स्वरुप भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिखाया था, उसकी अभ्यर्थना आप स्वयं करें, तब तो आनंद है इस जीवन का, नहीं तो सब बेकार है ।
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Durlabh Upanishad Book
पूज्य सदगुरुदेव ने दशकों पहले ही दुर्लभोपनिषद के बारे में स्पष्ट करते हुये कहा था कि जो व्यक्ति बिना नागा किये हुये 108 दिन तक लगातार दुर्लभोपनिषद का ज्ञेय अवस्था में पाठ करता है, सुनता है या श्रवण करता है तो उसे समस्त प्रकार की सिद्धियां स्वतः ही प्राप्त हो जाती हैं । मात्र 9 श्लोकों के माध्यम से हम जीवन में क्या-क्या प्राप्त कर सकते हैं इसका महत्व भी पूज्य सदगुरुदेव ने इस दुर्लभोपनिषद के माध्यम से समझाया है ।
मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि पहले कुछ समय तक हमें इस दुर्लभोपनिषद को अपने घर में नित्य – प्रतिदिन बजाना चाहिए और इसका ध्यानपूर्वक श्रवण करना चाहिये । इससे हमें इस दुर्लभोपनिषद को आत्मसात करने में मदद मिलती है । वैसे तो इसमें केवल 9 ही श्लोक हैं लेकिन पूज्य सदगुरुदेव ने इनकी पूरी व्याख्या करते हुये इसके मूल तथ्य को स्पष्ट किया है कि आखिर इन 9 श्लोकों में ऐसी क्या बात है जिसके कारण हमें इसका पाठ करना चाहिए या श्रवण करना चाहिए । मेरा मानना है कि, एक बार जब श्लोक कंठस्थ हो जायें, इसकी लय पर पकड़ बन जाये, उसके बाद ही इसका सस्वर (गाकर) पाठ करना चाहिए । एक बार आंखें बंद करके, ध्यान लगाते हुये, आप इन श्लोकों को गाकर तो देखिये, पूरी सृष्टि का वैभव फीका न पड़ जाये तो कहना…!