गुरु मंत्र Guru mantra
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
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ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली मंत्र है …हमारा गुरु मंत्र ….जो शाश्वत है सनातन है..गुरु मंत्र के प्रत्येक बीजाक्षर में अनंत शक्ति समाहित है….सदगुरुदेव निखिलेश्वर प्रदत्त इस गुरु मंत्र के सामने तो भगवान शिव के द्वारा प्रदत्त सप्त कोटि मंत्र भी गौण है …..ये गुरु मंत्र पूर्णतया जाग्रत है…जवलंत है….एक दावानल है….जिसमे शिष्य या साधक का समस्त पाप ताप जलकर भष्मीभूत हो जाते है….
षोडस अक्षरों से युक्त हमारा गुरु मंत्र ….षोडस कलायुक्त है…..सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड की शक्तिया इसमें समाहित हैं…..”हे नारायण आप सभी तत्वों के मूल तत्त्व है…सभी साकार और निर्विकार शक्तियों से भी परे हैं….समस्त ब्रह्मण्ड के अधिपति हैं….में आपको गुरु रूप में श्रद्धा पूर्वक नमन करता हूँ.”..
प – पराकाष्टा – भौतिक और आध्यात्मिक
र – अग्नि तत्त्व – सारा ब्रह्माण्ड का ज्ञान
म – माधुर्य – आत्मिक शांति
त – तत्वमसि – असीमित शक्ति
वा – वायु – पांच प्रकार ,क्रिया योग में पारंगत
य – यम – यम पर पूर्णे विजय ,आकर्षक व्यक्तित्व
ना – नाद – दिव्य संगीत
रा – रास – दिव्य उत्सव ,पूर्ण कुण्डलिनी जागरण
य – यथार्थ , परम सत्य
ण – अणु या ब्रह्म – अष्ट सिद्धि
य – यज्ञ शास्त्र में पारंगत
गु – गुंजरन – गुरु का बीज मंत्र
रु – रूद्र – कभी वृद्ध नहीं होता ,सर्वव्यापी ,सर्वज्ञाता और सर्वशक्तिशाली
यो – योनि – फिर जन्म नहीं लेना पड़ता ,शिव की शक्ति
न – नवीनता – एक नयापन ,हर क्षण नया व्यक्तित्व
म – मातृत्व – असीमित ममता
जय गुरुदेव गुरुमंत्र ही सर्वश्रेष्ठ मंत्र इसी मे सब शाक्ति समाहित हैं फिर क्यों भटक रहे हो
गुरु वाणी
तुम्हारा जीवन एक सामान्य घटना नहीं है एक सामान्य चिंतन नहीं है ,तुम्हे यह मनुष्य देह अनायास ही प्राप्त नहीं हो गयी है कितने ही संघर्ष कितने ही गुरु के प्रयास इसके पीछे है,अत: इस जीवन को सहज ही मत लेना |इसका मूल्य समझो और मूल उद्देश्य को जानो |
मुझे अत्याधिक वेदना होती है जब तुम एक निद्रा की सी अवस्था में खोये रहते हो ,तुम भ्रम में पड़े रहते हो तथा वे भ्रम तुम्हे मूल लक्ष्य की और बढ़ने से रोकते है ,मानव जीवन पाकर भी आप खोये हुए हो यह आपका दुर्भाग्य ही है |
अगर ऐसा है तो तुम मेरे शिष्य हो ही नहीं सकते क्योंकि अगर आप मेरे शिष्य है तो आपमें यह क्षमता होनी चाहिए कि आप पशुता से उपर उठ कर मनुष्यता तथा मनुष्यता से उपर उठ कर देवता के स्थान पर पहुँच जाए |
शिष्य वही है जो भोतिकता को भोगे परन्तु आपने मूल उद्देश्य से न डगमगाए |उसकी द्रष्टि हमेशा आपने लक्ष्य पर टिकी रहे |मेरे इच्छा है कि तुम्हे उस उच्चतम स्थिति पर स्थापित कर दूं जहा भारत क्या ,पूरे विश्व में तुम्हे चुनोती देने वाला कोई न हो |
मैं तुम्हारी सभी कमियों को ओढने को तैयार हूँ ,मैं तुम्हारे विष रुपी कर्मो को पचाने के लिए तैयार हूँ क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो |तुम मेरे आत्म हो ,तुम मेरे अपने हो ,तुम मेरे हृदय की धडकन हो |
दूसरो की तरह तुम केवल धन ,वैभव ,काम ,ऐश्वर्य में फसे हो क्या यह उचित है |मैंने तो हमेशा तुम्हे संपन्न देखना चाहा है पर आत्म उत्थान की बलि देकर सम्पन्नता प्राप्त करना मेरा उद्देश्य नहीं,अगर तुमने सम्पन्नता प्राप्त कर भी ले और तुम्हारी आध्यात्मिक झोली फटी रह जाए तो सब व्यर्थ है |
तुम्हे आध्यात्मिक धरातल पर उच्चता और श्रेष्ठता की स्थिति तक पहुंचाना चाहता हूँ ,मैं चाहता हूँ फिर तुम जैसा कोई दूसरा अन्य न हो ,तुम हो तो केवल तुम हो |
परन्तु यह स्थिति तभी प्राप्त हो सकेगी जब तुम समर्पण कर दोगे ,मुझमे पूर्ण रूप से एकाकार हो सकोगे ,जब तुम्हारे और मेरे बीच थोड़ी भी दूरी नहीं रहेगी ,जब तुम्हारे कण -कण में गुरु का वास होगा ,जब तुम्हारी हर श्वास में उसी का उच्चारण होगा |
और यह स्थिति प्राप्त करने का सरलतम उपाय है गुरु मंत्र |निरंतर गुरु मंत्र जप द्वारा तुम उस स्थिति को प्राप्त कर सकते हो जबकि गुरु और शिष्य में इंच मात्र की भी दूरी नहीं रहती |ऐसा तुम कर पाओ यही मेरे कामना है |
जीवन का एक ही सत्य है कि यहां प्रत्येक अनुभव भंगुर है।जीवन में शाश्वत सिर्फ बदलाव है और जिसने स्वयं को गुरु के हवाले छोड़ दिया उसे बदलाव का भय नहीं होता।क्योंकि जब शिष्य गुरु को श्रद्धा सहित धारण करता है, तब उसके मन में किन्तु, परन्तु नहीं होते, वह अलमस्त हो जाता है उसे न तो अपना बीता हुआ कल परेशान करता है और ना ही आगामी कल की आशंका होती है।