#शरद_पूर्णिमा 06_अक्टूबर _2025
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Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!श्री श्रीत्रिपुरमहासुन्दरी महालक्ष्मी की सरल और संक्षिप्त साधना विधि ◆
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1. सब पहले आपके सामने देवी का कोई भी चित्र या यंत्र या मूर्ति हो। इनमेसे कुछ भी नही तो आपके रत्न या रुद्राक्ष पर पूजन करे .
2. घी का दीपक या तेल का दीपक या दोनों दीपक जलाये।
धुप अगरबत्ती जलाये। बैठने के लिए आसन हो।
जाप के लिए स्फटिक माला
3. एक आचमनी पात्र , जल पात्र रखे। हल्दी,कुंकुम ,
चन्दन,अष्टगंध और अक्षत पुष्प ,नैवेद्य के लिए
मिठाई या दूध या कोई भी वस्तु ,फल भी एकत्रित करे।
अगर यह सामग्री नहीं है तो मानसिक पूजन करे
4. सबसे पहले गुरु का स्मरण करे। अगर आपके गुरु नहीं
है तो भी गुरु स्मरण करे। गणेश का स्मरण करे
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
फिर आचमनी या चमच से चार बार बाए हाथ से
दाहिने हाथ पर पानी लेकर पिए
(अगर जल नहीं है तो मानसिक ग्रहण करे )
श्रीम आत्मतत्वाय स्वाहा
श्रीम विद्या तत्वाय स्वाहा
श्रीम शिव तत्वाय स्वाहा
श्रीम सर्व तत्वाय स्वाहा
उसके बाद पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे
(अगर पूजन सामग्री नहीं है तो मानसिक करे )
ॐ श्री गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री परम गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः
उसके बाद अपने आसन का स्पर्श करे और पुष्प
अक्षत अर्पण करे
ॐ पृथ्वीव्यै नमः
अब तीन बार सर से पाँव तक हाथ फेरे
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आत्मानं रक्ष रक्ष
अब जल के पात्र को गंध लगाकर अक्षत पुष्प अर्पण करे
ॐ कलश मण्डलाय नमः
अब दाहिने हाथ में जल पुष्प अक्षत लेकर संकल्प करे
मन में यह बोले की मैं (अपना नाम और गोत्र ) शरद पूर्णिमा के पर्व काल मे इंद्र और कुबेर सहित भगवती महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होने हेतु तथा अपनी समस्या निवारण हेतु
या अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु
यथा शक्ति साधना कर रहा हूँ
और जल छोड़े
अब गणेशजी का ध्यान करे
वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा
ॐ श्री गणेशाय नमः का 11 या 21 बार जाप करे
फिर भैरव जी का स्मरण करे
ॐ भं भैरवाय नमः
अब चंद्रमा का ध्यान करे
दधि शंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम् !
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम !!
ॐ सों सोमाय नम:
सोम आवाहयामि स्थापयामि पूजयामि नम: तर्पयामि स्वाहा
पुष्प अक्षत और एक आचमनी जल अर्पण करे ..
हो सके तो चांदी के पात्र मे या अन्य किसी पात्र मे दूध भरकर रखे..
उसे अनामिका उंगली से स्पर्श कर चंद्रमा के कलाओ का आवाहन करे ..
ॐ सां सीं सूं सैं सौं स: स म ल व र युं सोम मंडलाय नम: सोम मंडल षोडश कलाम आवाहयामि
मम क्षीरपात्रे स्थापयामि
अं अमृता कलायै नम:
आं मानदा कलायै नम:
इं पूषा कलायै नम:
ईं तुष्टी कलायै नम:
उं पुष्टि कलायै नम:
ऊं रति कलायै नम:
ऋ धृति कलायै नम:
ऋ शशिनी कलायै नम:
लृं चंद्रिका कलायै नम:
लृं कांति कलायै नम:
एं ज्योत्स्ना कलायै नम:
ऐं श्री कलायै नम:
ओं प्रीति कलायै नम:
औं अंगदा कलायै नम:
अं पूर्णा कलायै नम:
अ: पूर्णामृता कलायै नम:
अब चंद्रमा के विविध नामोसे पूजन स्थान पर पुष्पअक्षत अर्पण कर पूजन करे
1) सों सुधाकराय नम:
2) सों तारापतये नम:
३) सों क्षपाकराय नम:
4) सों कुमुदप्रियाय नम:
5) सों लोकप्रियाय नम:
6) सों शुभ्रभानवे नम:
7) सों चंद्रमसे नम:
सों रोहिणीपतये नम:
9) सों शशिने नम:
10) सों हिमकराय नम:
11) सों राजाय नम:
12) सों द्विजराजाय नम:
13) सों निशाकराय नम:
14) सों आत्रेयाय नम:
15) सों इंदवे नम:
16) सों शीतांशवे नम:
17) सों औषधीशाय नम:
18) सों कलानिधये नम:
19) सों जैवातृकाय नम:
20)सों रमाभ्राताय नम:
21) सों क्षीरोदार्णवसंभवाय नम:
22) सों नक्षत्रनायकाय नम:
23) सों शंभवे नम:
24) सों शिरचूडामणये नम:
25) सों विभवे नम:
26) सों तापहर्ताय नम:
27) सों नभोदीपाय नम:
28) सों सोमाय नम:
फिर हाथ जोडकर चंद्रमा की प्रार्थना करे
रोहिणीश: सुधामूर्ति: सुधागान्नो सुधाशन : !
विषमस्थानसंभूतां पीडां दहतु मे विधु:
ॐ श्वेतांबर: श्वेतवपु: किरिटी श्वेतद्युति: दंडधरो द्विबाहु: !
चंद्रोsमृतात्मा वरद: शशांक:
श्रेयांसि मह्यं प्रददातुदेव: !! १!!
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवं !
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुटभूषणम !! २!!
क्षीरसिंधुसमुत्पन्नो रोहिणीसहित: प्रभु: !
हरस्य मुकुटावास बालचंद्र नमोस्तुते !!३!!
सुधामया यत्किरणा: पोषयंत्योषधीवनम !
सर्वान्नरसहेतुं तं नमामि सिंधुनंदनम !! ४!!
राकेशं तारकेशं च रोहिणीप्रियसुंदरं !
ध्यायतां सर्वदोषघ्नं नमामींदुं मुहुर्मुहु:
चंद्रमा को पूजन स्थान पर अर्घ्य दे
ॐ अमृतांगाय विद्महे कलारुपाय धीमहि तन्न: सोम: प्रचोदयात्
इंद्र पूजन
हाथ मे पुष्प अक्षत लेकर इंद्र का ध्यान करे ..
ऐरावतगजारुढं सहस्त्राक्षं शचीपतिम !
वज्रायुधधरं देवं सर्वलोक महीपतिम !!
इंद्राण्या च समायुक्तं वज्रपाणिं जगत्प्रभुं !
इंद्रं ध्यायेत तु देवेशं सर्वमंगल सिद्धये !!
ॐ अस्मिन पूजास्थाने इंद्राणी सहित इंद्रं ध्यायामि आवाहयामि स्थापयामि पूजयामि नम:
इंद्र देवता का पंचोपचार पूजन करे
ॐ इंद्राय नम: गंधं समर्पयामि
ॐ इंद्राय नम: पुष्पम समर्पयामि
ॐ इंद्राय नम: धूपं समर्पयामि
ॐ इंद्राय नम: दीपं समर्पयामि
ॐ इंद्राय नम: नैवेद्यम समर्पयामि
अब नीचे दिये हुये नामोसे पुष्प अक्षत अर्पण कर इंद्र देवता का पूजन करे
ॐ इंद्राय नम:
ॐ महेंद्राय नम:
ॐ देवेंद्राय नम:
ॐ स्वर्णालकाय नम:
ॐ सहस्त्रनेत्राय नम:
ॐ शुभदाय नम:
ॐ वृत्रारये नम:
ॐ पाकशासनाय नम:
ॐ ऐरावतगजारुढाय नम:
ॐ बिडौजसे नम:
ॐ शतमखाय नम:
ॐ पुरंदराय नम:
ॐ त्रिलोकेशाय नम:
ॐ शचीपतये नम:
अब एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर इंद्र को अर्घ्य दे
ॐ देवेंद्राय विद्महे सहस्त्रनेत्राय धीमहि तन्न: इंद्र प्रचोदयात् ..
अब हाथ जोडकर इंद्र देवता को प्रणाम करे
इंद्र: सुरपति: श्रेष्ठो वज्रहस्तो महाबल:
शतयज्ञाधिपो देवस्तस्मै नित्यं नमो नम:
जयंतजनको देव: सहस्त्राक्ष पुरंदर: !
पुलोमजापतिर्जिष्णु:
अब हाथ मे पुष्प अक्षत लेकर कुबेर का ध्यान मंत्र पढकर उनका आवाहन करे
शंखपद्मादि निधये कुबेराय नमो नम:
नवनिधि समोपेतं धनदं यान पुष्पकं !
पिंगाक्षं भावये नित्यं हैम वर्णमनोहरं !!
श्री धनाकर्षण श्री कुबेरराज ध्यायामि आवाहयामि
आगच्छेह धनाध्यक्ष महालक्ष्मी युतो भव !
यावत पूजां समाप्येत तावत वा कुरुतं स्थितीम !!
आवाहये त्वा पुजास्थाने अस्मिन सर्वपुण्य जनेश्वर !
पूजां गृहाणीश्व हे श्रीद: यक्षराजाय ते नम: !!
श्री कुबेर राज आवाहयामि स्थापयामि पूजयामि नम:
अब उनका पंचोपचार पूजन करे
श्री कुबेराय नम: गंधं समर्पयामि
श्री कुबेराय नम: पुष्पं समर्पयामि
श्री कुबेराय नम: धूपं समर्पयामि
श्री कुबेराय नम: दीपं समर्पयामि
श्री कुबेराय नम: नैवेद्यं समर्पयामि
अब पुष्प अक्षत लेकर कुबेरजी का उनके निम्न नामो से पूजन करे
१) ॐ त्र्यंबकाय नम:
२) ॐ गुह्येश्वराय नम:
३) ॐ यक्षेशाय नम:
४) ॐ धनदाय नम:
५) ॐ अश्वारुढाय नम:
६) ॐ कोशाधीशाय नम:
७) ॐ मणिग्रीवाय नम:
८) ॐ एकपिंगाय नम:
९) ॐ अलकाधीशाय नम:
१०) ॐ निधीशाय नम:
११) ॐ शंकरसखाय नम:
१२) ॐ लक्ष्मीसाम्राज्यदायकाय नम:
१३) ॐ नलकूबराय नम:
१४) ॐ वैश्रवणाय नम:
१५) ॐ सोमाय नम:
१६) ॐ किन्नरेशाय नम:
१७) ॐ यक्षराज्ञे नम:
१८) ॐ यक्षिणीवृत्ताय नम:
१९) ॐ यक्षाय नम:
२०) ॐ रावणाग्रजाय नम:
२१) ॐ कोशाधीशाय नम:
अब एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर कुबेर को अर्घ्य दे
कुबेर गायत्री
ॐ यक्षेशाय विद्महे वैश्रवणाय धीमहि तन्न: श्रीद: प्रचोदयात्
अब हाथ जोडकर कुबेर को प्रणाम करे
वित्तेशाय कुबेराय राजराजाय यक्षसे
धनाध्यक्षाय श्रीदाय एकपिंगाय ते नम : !!
यक्षश्री: प्रतिगृहाण्यति यक्षश्री: वै ददाति च !
यक्षश्री दारिका द्वाभ्यां यक्षश्रिये नमो नम: !!
अब आप महालक्ष्मी का ध्यान करे ..
फिर चाहे तो हृदय स्तोत्र से आवाहन करे ..वैसे तो यह स्तोत्र बहुत बडा है लेकिन इसका संक्षिप्त रुप एक दुसरी पोस्ट मे नवरात्री मे प्रस्तुत किया है ..
महालक्ष्मी का आवाहन करे ..आवाहन के लिये हृदय स्तोत्र का पाठ और फिर ध्यान मंत्र का पाठ करे ..
ध्यान
—-
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी
गंभीरावर्तनाभिस्तनभारनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया
या लक्ष्मी दिव्यरुपै मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः
सानित्यं पद्महस्ता मम वसतु गॄहे सर्वमांगल्ययुक्ता
श्री महालक्ष्मी आवाहयामि मम गृहे मम कुले मम पूजा स्थाने आवाहयामि स्थापयामि नमः
(अगर आपको मुद्रा का ग्यान हो तो भगवती के लिए पद्ममुद्रा दिखाए )
फिर पुष्प अक्षत अर्पण करे ..और उनका पंचोपचार या षोडश उपचार पूजन करे
( निचे का मन्त्र बोलकर पुष्प अक्षत अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आवाहनं समर्पयामि
( निचे का मन्त्र बोलकर पुष्प अक्षत अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आसनं समर्पयामि
( निचे का मन्त्र बोलकर दो आचामनि जल अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पाद्यो पाद्यं समर्पयामि
( निचे का मन्त्र बोलकरजल में चन्दन अष्ट गंध मिलाकर अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः अर्ध्यम समर्पयामि
( निचे का मन्त्र बोलकर एक आचामनि जल अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि
( निचे का मन्त्र बोलकर स्नान के लिए जल अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः स्नानं समर्पयामि
स्नान के बाद साधक चाहे तो श्रीसूक्त या अन्य महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करते हुये अभिषेक करे ..
( निचे का मन्त्र बोलकर मौली लाल धागा या अक्षत अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि
( निचे का मन्त्र बोलकर मौली या अक्षत अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः उप वस्त्रं समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः हरिद्रा कुमकुम समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः चन्दन अष्ट गंधं समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः सुगन्धित द्रव्यम समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः अलंकारार्थे अक्षतान समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पं समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पमालाम समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः धूपं समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः दीपं समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यं समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः फलं समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि’
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः द्रव्य दक्षिणा समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः कर्पुर आरती समर्पयामि
अब आप अष्ट सिद्धि का पूजन करे
एकेक मन्त्र से गंध अक्षत पुष्पं अर्पण करे
ॐ अणिम्ने नमः
ॐ महिम्ने नमः
ॐ गरिम्ने नमः
ॐ लघिम्ने नमः
ॐ प्राप्त्यै नमः
ॐ प्राकाम्यै नमः
ॐ इशितायै नमः
ॐ वशितायै नमः
अब आप अष्टलक्ष्मी का पूजन करे
एकेक मन्त्र से गंध अक्षत पुष्पं अर्पण करे
ॐ आद्य लक्ष्म्यै नमः
ॐ धन लक्ष्म्यै नमः
ॐ धान्य लक्ष्म्यै नमः
ॐ धैर्य लक्ष्म्यै नमः
ॐ गज लक्ष्म्यै नमः
ॐ संतान लक्ष्म्यै नमः
ॐ विद्या लक्ष्म्यै नमः
ॐ विजय लक्ष्म्यै नमः
(यहाँ पर भगवती महालक्ष्मी की 32 नामावली अलग दी है उससे पूजन करे .अगर समय नहि है तो इसको छोडकर आगे का पुजन कर सकते है )
साधक एकेक नाम पढ़कर पुष्प अक्षत चढ़ाते जाए।
1. ॐ श्रियै नमः।
2. ॐ लक्ष्म्यै नमः।
3. ॐ वरदायै नमः।
4. ॐ विष्णुपत्न्यै नमः।
5. ॐ वसुप्रदायै नमः।
6. ॐ हिरण्यरूपिण्यै नमः।
7. ॐ स्वर्णमालिन्यै नमः।
8. ॐ रजतस्त्रजायै नमः।
9. ॐ स्वर्णगृहायै नमः।
10. ॐ स्वर्णप्राकारायै नमः।
11. ॐ पद्मवासिन्यै नमः।
12. ॐ पद्महस्तायै नमः।
13. ॐ पद्मप्रियायै नमः।
14. ॐ मुक्तालंकारायै नमः।
15. ॐ सूर्यायै नमः।
16. ॐ चंद्रायै नमः।
17. ॐ बिल्वप्रियायै नमः।
18. ॐ ईश्वर्यै नमः।
19. ॐ भुक्त्यै नमः।
20. ॐ प्रभुक्त्यै नमः।
21. ॐ विभूत्यै नमः।
22. ॐ ऋद्धयै नमः।
23. ॐ समृद्ध्यै नमः।
24. ॐ तुष्टयै नमः।
25. ॐ पुष्टयै नमः।
26. ॐ धनदायै नमः।
27. ॐ धनैश्वर्यै नमः।
28. ॐ श्रद्धायै नमः।
29. ॐ भोगिन्यै नमः।
30. ॐ भोगदायै नमः।
31. ॐ धात्र्यै नमः।
32. ॐ विधात्र्यै नमः।
अब एक आचमनी जल लेकर पूजा स्थान पर छोड़े
अनेन महालक्ष्मी द्वात्रिंश नाम पूजनेन श्री भगवती महालक्ष्मी देवता प्रीयन्तां न मम .
अब महालक्ष्मी के पुत्रों का पूजन करे
(अगर समय है तो करे )
१. ॐ देवसखाय नमः
२. ॐ चिक्लीताय नमः
३. ॐ आनंदाय नमः
४. ॐ कर्दमाय नमः
५. ॐ श्रीप्रदाय नमः
६. ॐ जातवेदाय नमः
७. ॐ अनुरागाय नमः
८. ॐ संवादाय नमः
९. ॐ विजयाय नमः
१०. ॐ वल्लभाय नमः
११. ॐ मदाय नमः
१२. ॐ हर्षाय नमः
१३. ॐ बलाय नमः
१४. ॐ तेजसे नमः
१५. ॐ दमकाय नमः
१६. ॐ सलिलाय नमः
१७. ॐ गुग्गुलाय नमः
१८ . ॐ कुरूण्टकाय नमः
अनेन पूजनेन श्री महालक्ष्मी पुत्र सहित श्री महालक्ष्मी प्रियन्ताम् न मम
हाथ जोड़ कर क्षमा प्रार्थना करे
त्रैलोक्य पूजिते देवी कमले विष्णु वल्लभे यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा इश्वरी कमला लक्ष्मीश्चचला भूतिर हरिप्रिया पद्मा पद्मालया संपदुच्चे: श्री: पद्माधारिणी
द्वादशैतानी नामानि लक्ष्मी संपूज्य य: पठेत स्थिरा लक्ष्मी भवेत् तस्य पुत्र दारादीभि : सह
अब आचमनी मे जल और कुंकुम लेकर महालक्ष्मी गायत्री से अर्घ्य दे सकते है ..
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात
हाथ जोड़ कर माँ महालक्ष्मी से प्रार्थना करे
त्राहि त्राहि महालक्ष्मी त्राहि त्राहि सुरेश्वरी त्राहि त्राहि जगन्माता दरिद्रात त्राही वेगत :
त्वमेव जननी लक्ष्मी त्वमेव पिता लक्ष्मी भ्राता त्वं च सखा लक्ष्मी विद्या लक्ष्मी त्वमेव च
रक्ष त्वं देव देवेशी देव देवस्य वल्लभे
दरिद्रात त्राही मां लक्ष्मी कृपां कुरु ममोपरी
माँ महालक्ष्मी मम गृहे मम कुले मम परिवारे मम गोत्रे मम हृदये
सदा स्थिरो भव प्रसन्नो भव वरदो भव
अब आप पुष्पांजली अर्पण करे
श्री चंद्र , इंद्र , कुबेर सहित श्री महालक्ष्मी पूजनार्थे समस्त मंगल अवाप्त्यर्थं , अस्मिन गृहे सर्व धन धान्य ऐश्वर्य अभिवृद्धर्थं श्री महालक्ष्मी प्रीत्यर्थ सर्व उपचारार्थे पुन: गंध अक्षत पुष्पम समर्पयामि ..
अनेन पूजनेन श्री इंद्र कुबेर सहित श्री महालक्ष्मी देवता प्रीयंताम न मम ..
साधक चाहे तो श्रीसूक्त , या महालक्ष्मी के विविध स्तोत्र का पाठ कऱे ..
अब स्फटिक माला से यथाशक्ती जाप करे ..
निम्न मंत्रो का यथाशक्ती जाप किजिये ..
१) ॐ सों सोमाय नम:
२) ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं श्री महालक्ष्म्यै नमः|
दिव्योवताम वे पद्मावती त्वं, लक्ष्मी त्वमेव धन धान्य सुतान्वदै च |
पूर्णत्व देह परिपूर्ण मदैव तुल्यं, पद्मावती त्वं प्रणमं नमामि ||
ज्ञानेव सिन्धुं ब्रह्मत्व नेत्रं , चैतन्य देवीं भगवान भवत्यम |
देव्यं प्रपन्नाति हरे प्रसीद, प्रसीद,प्रसीद, प्रसीद,प्रसीद ||
धनं धान्य रूपं, साम्राज्य रूपं,ज्ञान स्वरुपम् ब्रह्म स्वरुपम् |
चैतन्य रूपं, परिपूर्ण रूपं , पद्मावती त्वं प्रणमं नमामि ||
न मोहं न क्रोधं न ज्ञानं न चिन्त्यं परिपुर्ण रूपं भवताम वदैव |
दिव्योवताम सूर्य तेजस्वी रूपं , पद्मावती त्वं प्रणमं नमामि ||
सन्यस्त रूपमपरम पूर्णम गृहस्थं, देव्यो सदाहि भवताम श्रियेयम |
पद्मावती त्वं, हृदये पद्माम, कमलत्व रूपं पद्मम प्रियेताम ||
|| इति परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद कृत पद्मावती स्तोत्रं सम्पूर्णं ||
#विधि :-
सबसे पहले तीन बार ” ॐ निखिलेश्वराय नमः ” मन्त्र का जोर से बोलकर उच्चारण करें |
इस स्तोत्र को शरद पूर्णिमा या दीपावली के दिन 1,3,5,11 जैसे आपकी क्षमता हो वैसा पाठ करें |
या इसे किसी माह की पूर्णिमा से प्रारंभ करके अगले मॉस की पूर्णिमा पर समाप्त करें | नित्य 1,3,5,11 जैसे आपकी क्षमता हो वैसा पाठ करें |
सात्विक आहार /विचार /व्यवहार रखें |
क्रोध ना करें |
किसी स्त्री का अपमान ना करें |
जिस दिनपाठ पूर्ण हो जाए उस दिन किसी गरीब विवाहित महिला को लाल साड़ी दान करें|
लक्ष्मी मंदिर या दुर्गा मंदिर में अपनी क्षमतानुसार गुलाब या कमल के फूल चढ़ाएं और देवी पद्मावती से कृपा करने की प्रार्थना करके सीधे वापस घर आ जाएँ |
घर आने के बाद एक बार और पाठ करें |
फिर से 3 बार ” ॐ निखिलेश्वराय नमः ” मन्त्र का जोर से बोलकर उच्चारण करें |
घर में या परिचय में कोई वृद्ध महिला हो तो उसके चरण स्पर्श करें और कुछ भेंट दें , भेंट आप अपनी क्षमतानुसार कुछ भी दे सकते हैं |
इस प्रकार पूजन संपन्न हुआ | आगे आप चाहें तो नित्य एक बार पाठ करते रहें |
नारायण उवाच
सर्व सम्पत्प्रदस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः।
ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवी पद्मालया स्वयम्॥१॥
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः।
पुण्यबीजं च महतां कवचं परमाद्भुतम्॥२॥
ॐ ह्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा मे पातु मस्तकम्।
श्रीं मे पातु कपालं च लोचने श्रीं श्रियै नमः॥३॥
ॐ श्रीं श्रियै स्वाहेति च कर्णयुग्मं सदावतु।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा मे पातु नासिकाम्॥४॥
ॐ श्रीं पद्मालयायै च स्वाहा दन्तं सदावतु।
ॐ श्रीं कृष्णप्रियायै च दन्तरन्ध्रं सदावतु॥५॥
ॐ श्रीं नारायणेशायै मम कण्ठं सदावतु।
ॐ श्रीं केशवकान्तायै मम स्कन्धं सदावतु॥६॥
ॐ श्रीं पद्मनिवासिन्यै स्वाहा नाभिं सदावतु।
ॐ ह्रीं श्रीं संसारमात्रे मम वक्षः सदावतु॥७॥
ॐ श्रीं श्रीं कृष्णकान्तायै स्वाहा पृष्ठं सदावतु।
ॐ ह्रीं श्रीं श्रियै स्वाहा मम हस्तौ सदावतु॥८॥
ॐ श्रीं निवासकान्तायै मम पादौ सदावतु।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रियै स्वाहा सर्वांगं मे सदावतु॥९॥
प्राच्यां पातु महालक्ष्मीराग्नेय्यां कमलालया।
पद्मा मां दक्षिणे पातु नैर्ऋत्यां श्रीहरिप्रिया॥१०॥
पद्मालया पश्चिमे मां वायव्यां पातु श्रीः स्वयम्।
उत्तरे कमला पातु ऐशान्यां सिन्धुकन्यका॥११॥
नारायणेशी पातूर्ध्वमधो विष्णुप्रियावतु।
संततं सर्वतः पातु विष्णुप्राणाधिका मम॥१२॥
इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम्।
सर्वैश्वर्यप्रदं नाम कवचं परमाद्भुतम्॥१३॥
सुवर्णपर्वतं दत्त्वा मेरुतुल्यं द्विजातये।
यत् फलं लभते धर्मी कवचेन ततोऽधिकम्॥१४॥
गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं धारयेत् तु यः।
कण्ठे वा दक्षिणे वाहौ स श्रीमान् प्रतिजन्मनि॥१५॥
अस्ति लक्ष्मीर्गृहे तस्य निश्चला शतपूरुषम्।
देवेन्द्रैश्चासुरेन्द्रैश्च सोऽत्रध्यो निश्चितं भवेत्॥१६॥
स सर्वपुण्यवान् धीमान् सर्वयज्ञेषु दीक्षितः।
स स्नातः सर्वतीर्थेषु यस्येदं कवचं गले॥१७॥
यस्मै कस्मै न दातव्यं लोभमोहभयैरपि।
गुरुभक्ताय शिष्याय शरणाय प्रकाशयेत्॥१८॥
इदं कवचमज्ञात्वा जपेल्लक्ष्मीं जगत्प्सूम्।
कोटिसंख्यं प्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सोद्धिदायकः॥१९॥
#श्री_महालक्ष्मी_हृदय_स्तोत्र◆ ( लघु रुप )
यह महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र जो की एक बहुत बडा लेकिन प्रभावशाली स्तोत्र है उसका लघु रुप है .. भगवती महालक्ष्मी के पुजन मे लक्ष्मी का आवाहन करने हेतु इसे पढे .. इस स्तोत्र के पाठ से महालक्ष्मी कृपा अवश्य संभव है ..
श्रीमत सौभाग्यजननीं , स्तौमि लक्ष्मीं सनातनीं !
सर्वकामफलावाप्ति साधनैक सुखावहां
!!1!!
श्री वैकुंठ स्थिते लक्ष्मि ! समागच्छ मम अग्रत: !
नारायणेन सह मां , कृपा दृष्ट्या अवलोकय !! 2!!
सत्यलोक स्थिते लक्ष्मि ! त्वं समागच्छ सन्निधिम !
वासुदेवेन सहिता, प्रसीद वरदा भव !! 3!!
श्वेतद्वीपस्थिते लक्ष्मि ! शीघ्रम आगच्छ सुव्रते !
विष्णुना सहिते देवि ! जगन्मात: प्रसीद मे !! 4 !!
क्षीराब्धि संस्थिते लक्ष्मि ! समागच्छ समाधवे !
त्वत कृपादृष्टि सुधया , सततं मां विलोकय !! 5!!
रत्नगर्भ स्थिते लक्ष्मि ! परिपूर्ण हिरण्यमयि !
समागच्छ समागच्छ , स्थित्वा सु पुरतो मम !! 6 !!
स्थिरा भव महालक्ष्मि ! निश्चला भव निर्मले !
प्रसन्ने कमले देवि ! प्रसन्ना वरदा भव !! 7!!
श्रीधरे श्रीमहाभूते ! त्वदंतस्य महानिधिम !
शीघ्रम उद्धृत्य पुरत: , प्रदर्शय समर्पय !! 8 !!
वसुंधरे श्री वसुधे , वसु दोग्ध्रे कृपामयि !
त्वत कुक्षि गतं सर्वस्वं , शीघ्रं मे त्वं प्रदर्शय !! 9 !!
विष्णुप्रिये ! रत्नगर्भे ! समस्त फलदे शिवे !
त्वत गर्भ गत हेमादीन ,संप्रदर्शय दर्शय !! 10 !!
अत्रोपविश्य लक्ष्मि ! त्वं स्थिरा भव हिरण्यमयि !
सुस्थिरा भव सुप्रीत्या , प्रसन्न वरदा भव !! 11 !!
सादरे मस्तकं हस्तं , मम तव कृपया अर्पय !
सर्वराजगृहे लक्ष्मि ! त्वत कलामयि तिष्ठतु !! 12 !!
यथा वैकुंठनगरे , यथैव क्षीरसागरे !
तथा मद भवने तिष्ठ, स्थिरं श्रीविष्णुना सह !! 13 !!
आद्यादि महालक्ष्मि ! विष्णुवामांक संस्थिते !
प्रत्यक्षं कुरु मे रुपं , रक्ष मां शरणागतं !! 14 !!
समागच्छ महालक्ष्मि ! धन्य धान्य समन्विते !
प्रसीद पुरत: स्थित्वा , प्रणतं मां विलोकय !! 15 !!
दया सुदृष्टिं कुरुतां मयि श्री: !
सुवर्णदृष्टिं कुरु मे गृहे श्री: !! 16 !!
#शरद_पूर्णिमा के दिन क्यों खाते हैं खीर, जानिए 5 कारण●
*शरद पूर्णिमा के दिन खीर खाने या दूध पीने के प्रचलन हैं। आखिर इस दिन खीर क्यों खाते हैं? क्या है इसका वैज्ञानिक कारण और रहस्य जानिए 5 कारण।*
*1.अमृत की किरणें ● कहते हैं कि इस दिन आसमान से अमृतमयी किरणों का आगमन होता है। इन किरणों में कई तरह के रोग नष्ट करने की क्षमता होती है। ऐसे में जहां इन किरणों से बाहरी शरीर को लाभ मिलता है वहीं शरीर के भीतर के अंगों को भी लाभ मिले इसके लिए खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखकर बाद में उसे खाया जाता है। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग अपने घरों की छतों पर खीर रखते हैं।
*2.अमृत समान बन जाता है दूध ● यह भी कहा जाता है कि इस दौरान चंद्र से जुड़ी हर वस्तु जाग्रत हो जाती है। दूध भी चंद्र से जुड़ा होने ने कारण अमृत समान बन जाता है जिसकी खीर बनाकर उसे चंद्रप्रकाश में रखा जाता है।
*3.शीत ऋतु का आगमन ● शरद पूर्णिमा से मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है। इस तिथि के बाद से वातावरण में ठंडक बढ़ने लगती है। शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए, क्योंकि इन्हीं चीजों से ठंड में शक्ति मिलती है।
*4.पौष्टिक पदार्थ का सेवन ● खीर में दूध, चावल, सूखे मेवे आदि पौष्टिक चीजें डाली डाती हैं, जो कि शरीर के लिए फायदेमंद होती हैं। इन चीजों की वजह से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। यहीं खीर जब पूर्णिमा को बनाकर खाई जाए तो उसका गुण दोगुना हो जाता है।
*5.खीर की प्रसाद का वितरण ● यह भी मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन दूध या खीर का प्रसाद वितरण करने से जहां चंद्रदोष दूर हो जाता है वहीं लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
*इसीलिए कुछ स्थानों पर सार्वजनिक रूप से खीर प्रसादी का वितरण किया जाता है।
।।दशाक्षरलक्ष्मीमन्त्रम्।।
अस्य श्रीदशाक्षरीमहामन्त्रस्य –
दक्ष ऋषिः विराट् छन्दः श्रीलक्ष्मीः देवता
सर्वेष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।
।।ऋष्यादि न्यासः।।
दक्ष ऋषये नमः शिरसि
विराट् छन्दसे नमः मुखे
श्रियै देवतायै नमः हृदि
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे
।।करन्यासः।।
ॐ देव्यै नमः अङ्गुष्टाभ्यां नमः।
ॐ पद्मिन्यै नमः तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ विष्णुपत्न्यैनमः मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ वरदायैनमः अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ कमलायै नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ कमलवासिन्यै नमः।करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।
।।हृदयादि पञ्चाङ्गन्यासः।।
ॐ देव्यै नमः हृदयाय नमः।
ॐ पद्मिन्यै नमः शिरसे स्वाहा।
ॐ विष्णुपत्न्यैनमः शिखायै वषट्।
ॐ वरदायै नमः कवचाय हुं।
ॐ कमलवासिन्यै नमः अस्त्राय फट्।
ॐ भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बन्धः॥
।।ध्यानम्।।
आसीना सरसीरुहे स्मितमुखी हस्ताम्बुजै र्बिभ्रति
दानं पद्मयुगाभये च वपुषा सौदामिनी सन्निभा।
मुक्ताहारविराजमानपृथुलोत्तुङ्गस्तनोद्भासिनी पायाद्वः कमला कटाक्षविभवैरानन्दयन्ती हरिम्॥
(एवं ध्यात्वा पीठशक्तिभिः पीठपूजां कृत्वा स्वर्णादि निर्मितं यन्त्रं अस्त्रमन्त्रेण आसनं दत्वा पीठमध्ये संस्थाप्य पुनर्ध्यात्वा
मूलेन मूर्तिं प्रकल्प्य, आवाहनादि पुष्पाक्षतैः उपचारैः सम्पूज्य देव्याज्ञां गृहीत्वा आवरणपूजां कुर्यात्।)
षट्कोण केसरेषु –
आग्नेयकोणे… ॐ देव्यै नमः हृदयाय नमः।
निरृतिकोणे… ॐ पद्मिन्यै नमः शिरसे स्वाहा।
वायव्यकोणे… ॐ विष्णुपत्न्यै नमः शिखायै वषट्।
ईशान्यकोणे… ॐ वरदायै नमः कवचाय हुं।
पश्चिमे कोणे… ॐ कमल वासिन्यै नमः अस्त्राय फट्।
इति पञ्चाङ्गानि पूजयेत् ततः पुष्पाञ्जलिं आदाय मूलमन्त्रं उच्चार्य,
ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सले।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम्॥
इति पुष्पाञ्जलिं विकीर्य विशेषार्घ्यात् बिन्दुं निक्षिप्य पूजिताः तर्पिताः सन्तु
इति वदेत् – ततः अष्टदलपद्मेषु –
पूर्वे… ॐ बलाक्यै नमः
आग्नेये… ॐ विमलायै नमः।
दक्षिणे… ॐ कमलायै नमः।
नैरृत्यै… ॐ विभीषिकायै नमः।
पश्चिमे… ॐ मालिकायै नमः।
वायव्ये… ॐ शाङ्कर्यै नमः।
उदीच्यां… ॐ वसुमालिकायै नमः।
ईशान्ये… ॐ वनमालिकायै नमः।
इति भक्त्या पूजयित्वा पुष्पाञ्जलिं गृहीत्वा,
ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं द्वितीया वरणार्चनम्॥
ततः भूपुरे क्रमेण –
पूर्वे… ॐ वं वज्राय नमः ॐ इन्द्राय नमः।
आग्नेये..ॐ शं शक्तये नमः ॐ अग्नये नमः।
दक्षिणे…ॐ दं दण्डाय नमः ॐ यमाय नमः।
नैरृत्ये… ॐ खं खड्गाय नमः ॐ निरृतये नमः।
पश्चिमे… ॐ पं पाशाय नमः ॐ वरुणाय नमः ।
वायव्ये… ॐ अं अङ्कुशाय नम ॐ वायवे नमः।
उत्तरे… ॐ गं गदायै नमः ॐ कुबेराय नमः।
ईशान्ये…ॐ त्रिं त्रिशूलाय नमः ॐ ईशानाय नमः।
(इति भक्त्या पूजां कृत्वा धूपादि नीराजनानन्तरं पूज्य हस्ते पुष्पाञ्जलिं गृहीत्वा )
ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं तृतीया वरणार्चनम्॥
।।अथ दशाक्षरलक्ष्मी मन्त्रः।।
मंत्र:-ॐ नमः कमलवासिन्यै स्वाहा।
।जपप्रकारः।
दशलक्षं जपेन्मन्त्रं मन्त्रविद्वि जितेन्द्रियः।
दशांशं जुहुयान्मन्त्री मधुनाऽऽक्तैः सरोरुहैः॥
इति सम्पूजयेद्देवीं सम्पदामालयं भवेत्।
समुद्रकन्यां सरिति कण्ठमात्रे जले स्थितः॥
त्रिलक्षं प्रजपेन्मन्त्री साक्षाद्वैश्रवणो भवेत्।
आराध्योत्तरनक्षत्रे देवीं स्रक्चन्दनादिभिः॥
नन्द्यावर्त्तभवैः पुष्पैः सहस्रं जुहुयात्ततः।
पूर्णमास्यां फलैः चित्रैः जुहुयान्मधुराप्लुतैः॥
पञ्चम्यां विशदाम्भोजैः शुक्रवारे सुगन्धिभिः।
अन्यैर्वा विशदैः पुष्पैः प्रतिमासं फलावतीः॥
स भवेदब्दमात्रेण सर्वदा सम्पदां निधिः॥
इति दशाक्षरलक्ष्मीमन्त्रं सम्पूर्णम्।
||जय सद्गुरुदेव, जय महाँकाल ||