Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji

Dialog with loved ones 2021 Gurudev Nand Kishore Shrimali

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श्रेष्ठ शिष्य के जीवन में गुरु के प्रति भक्ति, प्रीति, आस्था और विश्वास आधार स्तम्भ है। जिस घर में यह आधार स्तम्भ होता है वहां कभी मतिभ्रम नहीं होता, बुद्धि विचलित नहीं होती, वह साधक सदैव सद्कार्यों में, वैराग्य भाव से क्रियाशील रहता है।

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    जीवन में कभी-कभी संकट के बादल भी आते है पर गुरु का शिष्य कभी भी विचलित नहीं होता। कभी व्यर्थ का युद्ध नहीं करता, कभी अनर्गल विवाद नहीं करता। वह अपने कार्य को अर्जुन की भांति निरन्तर करता रहता है।

    शिष्य के मन में एक विशेष चेतना विद्यमान रहती हैं जिस कारण वह हर समय निश्चिन्त रहता है। वह जानता है कि मैंने अपने हृदय में गुरु को धारण किया हुआ है और मेरे गुरु ने मुझे कर्मशील होने की दीक्षा प्रदान की है इसलिये मैं कर्मपथ से कभी विचलित नहीं होऊंगा।

    गुरु कृपा से मुझे उत्तम फलों की प्राप्ति अवश्य होती रहेगी।

    एक बात कहूं, संसार में सबसे मुश्किल कार्य है, निश्चिन्त भाव से कर्म करना, क्योंकि चिन्ताएं तो चारों ओर से प्रहार करती रहती है पर जो निखिल शिष्य है वह नि+अचिन्त अर्थात्‌ निखिल भाव, निश्चिन्त भाव से क्रियाशील रहता है। जब मेरे ऊपर सद्गुरु हाथ है तो मैं क्यों व्यर्थ की चिन्ता करूं – “अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में।” के भाव से कर्मशील रहता है।

    एक विशेष बात कहूं, संसार में कोई भी मनुष्य कायर और डरपोक नहीं होता है। उसे हर परिस्थिति में संघर्ष करना आता है लेकिन उसकी बुद्धि उसे कभी-कभी डरपोक बना देती है क्योंकि वह मन की नहीं सुनता, बुद्धि की सुनता है। इसीलिये वह संसार में बार-बार अनावश्यक समझौते करता है और हर बार, हर एक से निभाने के चक्कर में एक कायरता उसके स्वभाव में आ जाती है। ध्यान रहे, मन कभी भी नफा नुकसान के बारे में नहीं सोचता। आपकी बुद्धि केवल इन्हीं दो बातों के बारे में हर समय सोचती रहती है, उसी दिशा में क्रियाशील रहती है। फिर धीरे-धीरे क्या होता है, कायरता उसके स्वभाव में आ जाती है। आपकी उसकी क्रियाशीलता में कमी आज जाती है।

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    केवल बुद्धि से कार्य करने वाला हमेशा विपरित परिस्थितियों के बारे में, अनहोनी बातों के बारे में आशंका भरे विचार ही सोचता है क्योंकि बुद्धि मन को बार-बार ऐसे ही विचार भेजती रहती है और वह सोचता रहता है कि मेरे ऊपर कितना भार है मेरा तो कोई सहयोगी नहीं है। कब तक संघर्ष करता रहूंगा?

    याद रखना, मनुष्य का सबसे बड़ा सहयोगी मन ही होता है। कायर बुद्धि हमेशा नकारात्मक पक्ष, अंधकार पक्ष को ही देखती है और मन सदैव सकारात्मक पक्ष को देखता है। इसलिये मन का स्वभाव तो विशुद्ध है, आपने अपनी बुद्धि द्वारा मन के ऊपर बहुत बड़ा भार डालकर अपना स्वभाव ही चिन्तामय बना दिया है।

    मन तो सदैव शांत और प्रसन्न ही रहना चाहता है तो उस मन की निरन्तर और निरन्तर सुनों। उस मन के तार गुरु से जुड़े है, ईश्वर से जुड़े है उन तारों को मजबूत करते रहो।

    मन तो सदैव शिव का स्थान है, गुरु का स्थान है। गुरु और शिव आपको भ्रम से निकाल कर आनन्द भाव की ओर ले जाते है जहां आप अपने आप में पूर्णता से भरे रहे अपना कार्य शांत भाव से करते रहे।

    साधक वही है जो मन के ऊपर बुद्धि को नहीं हावी होने दे। इसलिये सकारात्मक चिन्तन के साथ कार्य करो। अपने घर में गुरु पूर्णिमा महोत्सव प्रेम और आनन्द से अवश्य सम्पन्न करना।

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